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सामान्य वर्ग को मिला 10 प्रतिशत आरक्षण

हाल ही मे सरकार ने सामान्य वर्ग को 10 प्रतिशत देना का बिल पास किया हैI भारतीय संविधान के अनुच्छेद – 15 और अनुच्छेद – 16 में सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण का प्रावधान किया गया है। बशर्ते यह साबित किया जा सके, कि वह औरों के मुकाबले सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े हुए हैं इसी आधार पर अनुसूचित जाति, जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षण (Reservation) लागू किया गया था।


आरक्षण की शुरुआत सामाजिक और शैक्षणिक तौर पर पिछड़ों को फायदा पहुंचाने के लिए की गई थी। लेकिन बाद के दौर में आर्थिक आधार को भी शामिल करने की बात प्रमुखता से उठती रही। हालांकि संविधान में आर्थिक आधार का जिक्र नहीं है अब केंद्र सरकार ने एक बड़ा फैसला लेते हुए आर्थिक रूप से पिछड़े सभी वर्गों के लोगों को सरकारी नौकरी शैक्षणिक संस्थानों में 10 प्रतिशत आरक्षण देने का फैसला किया है सरकार ने इस प्रस्ताव को मंजूरी दिलाने के लिए लोकसभा में संविधान संशोधन विधेयक पेश किया है।
ये 124 वां संविधान संशोधन है और विधेयक के लागू होने के बाद इसका फायदा आर्थिक रूप से पिछड़े हर वर्ग के लोगों के साथ साथ सभी अनारक्षित जातियों के गरीबों को मिलेगा।

किसको कितना आरक्षण मिलता है

  • अनुसूचित जाति अन्य   :-  15 प्रतिशत
  • अनुसूचित जनजाति     :- 7.5 प्रतिशत
  • पिछड़ा वर्ग प्रतिशत     :- 27 प्रतिशत

 किसको मिलेगा आरक्षण से लाभ

  • सालाना आय 8 लाख या उससे कम
  • 5 एकड़ या उससे कम कृषि योग्य भूमि
  • 1000 वर्ग फीट या उससे कम का फ्लैट
  • अधिसूचित नगरीय क्षेत्र में 100 गज से कम का फ्लैट
  • गैर अधिसूचित नगरी क्षेत्र में 200 गज का या उससे कम का फ्लैट
  • जो अभी तक किसी भी तरह के आरक्षण के अंतर्गत नहीं हो।

फिलहाल सुप्रीम कोर्ट ने 50 प्रतिशत आरक्षण (Reservation) की सीमा बांध रखी है इंदिरा साहनी के मुताबिक 50 प्रतिशत से ज्यादा आरक्षण (Reservation) नहीं दिया जा सकता। यह सीमा तक बांधी गई थी जब सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षण की बात की गई थी, जबकि नया आरक्षण आर्थिक आधार पर होगा।
हालांकि अभी तक भारत के संविधान में आर्थिक आधार पर आरक्षण (Reservation) का कोई प्रावधान नहीं है यही वजह थी कि 1991 में जब यूपीए सरकार ने आर्थिक आधार पर 10 फ़ीसदी आरक्षण देने का प्रस्ताव किया। तो सुप्रीम कोर्ट के 9 सदस्य पीठ ने उसे खारिज कर दिया। इसलिए सरकार को आर्थिक आधार पर आरक्षण के लिए संविधान में संशोधन करना होगा, इसके लिए अनुच्छेद -15 और अनुच्छेद – 16 में बदलाव करना होगा। दोनो अनुच्छेदों में बदलाव कर आर्थिक आधार पर आरक्षण (Reservation) देने का रास्ता साफ हो जाएगा। हालांकि संविधान संशोधन के लिए विधेयक के लोकसभा और राज्यसभा में दो तिहाई बहुमत से पास होना जरूरी है।

संविधान संशोधन

  • अनुच्छेद – 15 और अनुच्छेद – 16 में एक धारा जोड़ी जाएगी।
  • शैक्षणिक संस्थानों और सरकारी नौकरियों में आर्थिक रूप से कमजोर तबकों के लिए आरक्षण का प्रावधान किया जाएगा।
  • संसद में दोनों सदनों में कम से कम दो तिहाई बहुमत की जरूरत है।
  • राज्य आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए विशेष प्रावधान कर सकेंगे।

आरक्षण का संक्षिप्त वर्णन

आरक्षण का इतिहास बहुत पुराना है, आजादी से पहले ही नौकरी और शिक्षा में पिछड़ी जातियों के लिए आरक्षण देने की शुरुआत हो चुकी थी। इसके लिए विभिन्न राज्यों में विशेष आरक्षण के लिए समय-समय पर कई आंदोलन भी हुये।
  • 1882 में हंटर आयोग का गठन।
  • नौकरियों में आनुपातिक प्रतिनिधित्व की मांग।
  • 1891 में त्रावणकोर में सरकारी नौकरियों में आरक्षण की मांग।
  • 1901 में कोल्हापुर में शाहू महाराज द्वारा आरक्षण की शुरुआत।
  • 1921 में मद्रास प्रेसिडेंसी द्वारा जातिगत सरकारी आज्ञा पत्र जारी किया गया, जिसमें आरक्षण की व्यवस्था की गई।
  • 1935 में भारत सरकार अधिनियम में आरक्षण का प्रावधान किया गया।
  • 1935 में पूना समझौता, जिसमें दलित वर्ग के लिए अलग निर्वाचन क्षेत्र आवंटित किए गए।
  • 1937 में गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट, समाज के कमजोर तबकों के लिए सीटों के आरक्षण को गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट में शामिल किया गया। भारतीय राज्यों में सुशासन के अलावा संघीय ढांचे को बनाने के लिए ब्रिटिश शासकों ने कानून बनाया, इस एक्ट के साथ ही SC का इस्तेमाल शुरू हुआ।
  • 1942 में बाबा साहब अंबेडकर ने अनुसूचित जातियों की उन्नति के समर्थन के लिए अखिल भारतीय दलित वर्ग महासंघ की स्थापना की।
  • 1946 के कैबिनेट मिशन प्रस्ताव में अन्य कई सिफारिशों के साथ अनुपातिक प्रतिनिधित्व का प्रस्ताव किया गया।

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