वायुमंडल, पृथ्वी को घेरे हुए, गंधहीन, स्वादहीन, रंगहीन गैसों, धूल और वाष्प की एक पतली परत है जो पृथ्वी को चारों ओर से घेरे हुए है I वायुमंडल की ऊंचाई सागर स्तर से 480 किलोमीटर ऊंचाई तक मानी जाती है I वायुमंडल गुरुत्व द्वारा पृथ्वी के चारों ओर रुका हुआ है I वायुमंडल मुख्य रूप से गैसों का मिश्रण हैI
गैसों के आधार पर वायुमंडल को दो भागो मे विभाजित किया जा सकता है :-
गैसें (Gases) आयतन (%)
गैसों के आधार पर वायुमंडल को दो भागो मे विभाजित किया जा सकता है :-
- विषम मण्डल 2. सममण्डल
- विषम मण्डल :-
- विषममण्डल मे गैसों का मिश्रण समान नही है I ये मण्डल लगभग 80 कि.मी. से 480 कि.मी. तक पाया जाता है I
- सममण्डल :-
- सममण्डल मे गैसों का मिश्रण समान नही है I ये मण्डल सागर तल से 80 कि.मी. तक पाया जाता है I
1.क्षोभमंडल (Troposphere)
- ट्रोपोस्फीयर/विक्षोभ प्रदेश नामक शब्द का प्रयोग तिज्रांस-डि-बोर ने सर्वप्रथम किया I
- वायुमंडल की इस सबसे नीचली परत का भार सम्पूर्ण वायुमंडल का लगभग 15% हैI
- धरातल से इस परत की औसत ऊँचाई 10 कि.मी. हैI भूमध्य रेखा पर ऊँचाई 18 कि.मी. और ध्रुवों पर 8-10 कि.मी. हैI
- ग्रीष्म ऋतु में इस स्तर की ऊँचाई में वृद्धि और शीतऋतु में कमी पाई जाती हैI
- इस मंडल की प्रमुख विशेषता है प्रति 165 मी. की ऊँचाई पर तापमान में 1 डीग्री सेल्सियस की गिरावट आनाI इसमें सर्वाधिक क्षैतिज और लम्बवत तापान्तर होता हैI
- क्षोभमंडल में गर्म और शीतल होने का कार्य विकिरण, संचालन और संवहन द्वारा होता हैI
- इस मंडल को परिवर्तन मंडल भी कहते हैं. समस्त मौसमी घटनाएँ भी इसी मंडल में घटित होती हैंI
- इस मंडल की एक और विशेषता यह है कि इसके भीतर ऊँचाई में वृद्धि के साथ वायुवेग में भी वृद्धि होती हैI
- संवहनी तरंगों तथा विक्षुब्ध संवहन के कारण इस मंडल को कर्म से संवहनी मंडल और विक्षोभ मंडल भी कहते हैंI
2. क्षोभ सीमा (Tropopause)
- क्षोभ मंडल और समताप मंडल को अलग करनेवाली 1.5 कि.मी. मोटे संक्रमण को ट्रोपोपॉज या क्षोभ सीमा कहा जाता हैI
- क्षोभ सीमा ऊँचाई के साथ तापमान का गिरना बंद हो जाता हैI
- इसकी ऊँचाई भूमध्य रेखा पर 17-18 कि.मी. (तापमान- 80 डिग्री सेल्सियस) ध्रुवों पर 8-10 कि.मी. (तापमान -45 डिग्री सेल्सियस) है I
3. समताप मंडल (Stratosphere)
- क्षोभ सीमा से ऊपर 50 कि.मी. की ऊँचाई तक समताप मंडल का विस्तार हैI
- समताप मण्डल बादल तथा मौसम संबंधी घटनाओं से मुक्त रहता है।
- इस मण्डल के निचले भाग में जेट वायुयान के उड़ान भरने के लिए आदर्श दशाएं हैं।
- कुछ विद्वान् ओजोन मंडल को भी इसी में समाहित कर लेते हैंI
- इस मंडल में तापमान में कोई परिवर्तन नहीं होता और संताप रेखाएँ समानंतर न होकर लम्बवत होते हैंI
- इस मंडल की मोटाई ध्रुवों पर सर्वाधिक और विषुवत रेखा पर सबसे कम होती हैI
- शीत ऋतु में 50 डिग्री से 60 डिग्री अक्षाशों के बीच समताप मंडल सर्वाधिक गर्म होता हैI
- यह मंडल मौसमी घटनाओं से मुक्त होता है, इसलिए वायुयान चालकों के लिए उत्तम होता हैI
- 1992 में समताप मंडल की खोज एवं नामाकरण तिज्रांस-डि-बोर ने किया थाI
4. ओजोन मंडल (Ozonosphere)
- समताप मंडल के नीचले भाग में 15 से 35 कि.मी. के बीच ओजोन गैस का मंडल होता हैI
- ओजोन गैस सूर्य से निकलने वाली अतिप्त पराबैगनी किरणों को सोख लेती हैI
- इस स्तर में प्रति कि.मी. 5 डिग्री सेल्सियस की दर से तापमान बढ़ता हैI
- इसी अन्य तापमान के कारण वायुमंडल में ध्वनि एवं नीरवता के वाले उत्पन्न होते हैंI
- वर्तमान में ओजोन पार्ट के क्षरण की समस्या के निवारण के लिए मोंट्रियल प्रोटोकॉल एवं अन्य उपायों के जरिये ओजोन क्षरक पदार्थों आर कड़ाई से रोक लगाई जा रही हैI
मध्य मंडल (Mesophere)
- 50 से 80 कि.मी. की ऊँचाई वाला वायुमंडलीय भाग मध्य मंडल कहलाता है जिसमें तापमान में ऊँचाई के साथ ह्रास होता हैI
- इस मण्डल में तापमान ऊंचाई के साथ घटता जाता है तथा मध्यमण्डल की ऊपरी सीमा मेसोपाज पर तापमान 80 डिग्री सेल्सियस बताया जाता है।
आयन मंडल (Ionosphere)
- धरातल से 80-640 कि.मी. के बीच आयन मंडल का विस्तार हैI
- इस मण्डल में ऊंचाई के साथ ताप में तेजी से वृद्धि होती है।
- यहाँ पर अत्यधिक तापमान के कारण अति न्यून दबाव होता हैI फलतः पराबैगनी फोटोंस एवं उच्च वेगीय कणों के द्वारा लगातार प्रहार होने से गैसों का आयनीकरण हो जाता हैI
- आयन मण्डल, तापमण्डल का निचला भाग है जिसमें विद्युत आवेशित कण होते हैं जिन्हें आयन कहते हैं।
- आकाश का नील वर्ण, सुमेरु ज्योति, कुमेरु ज्योति तथा उल्काओं की चमक एवं ब्रह्मांड किरणों की उपस्थिति इस भाग की विशेषता हैI
- यह मंडल कई आयनीकृत परतों में विभाजित है, जो निन्मलिखित हैं :–
- D का विस्तार 80-96 कि.मी. तक है, यह पार्ट दीर्घ रेडियो तरंगों को परावर्तित करती हैI
- E1 परत 96 से 130 कि.मी. तक और E2 परत 160 कि.मी. तक विस्तृत हैं. E1 और E2 परत मध्यम रेडियो तरंगों को परावर्तित करती हैI
- F1 और F2 परतों का विस्तार 160-320 कि.मी. तक है, जो लघु रेडियो तरंगो को परावर्तित करते हैंI इस परत को एप्लीटन परत भी कहते हैंI
- G परत का विस्तार 400 कि.मी. तक हैI इस परत की उत्पत्ति नाइट्रोजन के परमाणुओं व पराबैगनी फोटोंस की प्रतिक्रिया से होती हैI
बाह्य मंडल (Exosphere)
- इसे वायुमण्डल का सीमांत क्षेत्र कहा जाता है। इस मण्डल की वायु अत्यंत विरल होती है।
- सामान्यतः 640 कि.मी. के ऊपर बाह्य मंडल का विस्तार पाया जाता हैI
- यहाँ पर हाइड्रोजन एवं हीलियम गैसों की प्रधानता हैI
- अद्यतन शोधों के अनुसार यहाँ नाइट्रोजन, ऑक्सीजन, हीलियम तथा हाइड्रोजन की अलग-अलग परतें भी होती हैंI
- लेमन स्पिट्जर ने इस मंडल पर विशेष शोध किया है.
वायुमंडल का संगठन
वायुमंडल का संगठन निम्नलिखित तत्वों से हुआ है –गैस
गैसें (Gases) आयतन (%)
- नाइट्रोजन 78.084
- ऑक्सीजन 20.946
- आर्गन 0.9340
- कार्बन डाईऑक्साइड 0.0407
- हाइड्रोजन 0.01
- नियोन 0.001818
- हीलियम 0.000524
- क्रिप्टान 0.000114
- जेनान 0.000005
- ओजोन 0.0000001
नाइट्रोजन
- यह जैविक रूप से निष्क्रिय और भारी गैस हैI
- इसका चक्रण वायुमंडल, मृदामंडल और जैवमंडल में अलग-अलग होता हैI
- राइजोबियम बैक्टीरिया वायुमंडलीय नाइट्रोजन को नाइट्रेट के रूप में ग्रहण करता हैI
- यह नाइट्रिक ऑक्साइड के रूप में अम्ल वर्षा के लिए उत्तदायी हैI
ऑक्सीजन
- यह प्राणदायिनी गैस हैI
- इस भारी गैस का संघनन वायुमंडल के नीचले भाग में हैI
- पौधे कार्बन डाईऑक्साइड से ग्लूकोज और कार्बोहाइड्रेट बनाते हैंI
- विविध कारणों से इस गैस की सांद्रता में वृद्धि के कारण ग्लोबल वार्मिंग एवं जलवायु परिवर्तन की समस्या उत्पन्न हो रही हैI
ओजोन
- वायुमंडल में अति अल्प मात्र में पाए जाने वाले ओजोन का सर्वाधिक सांद्रण 20-35 कि.मी. की ऊँचाई पर हैI
- ओजोन सूर्य से आने वाली घातक पराबैगनी किरणों ) को रोकती हैI
- वर्तमान में CFC एवं अन्य ओजोन क्षरण पदार्थों की बढ़ती मात्र के कारण ओजोन परत का क्षरण एक गंभीर समस्या के रूप में उभरी है.
- गैसों में नाइट्रोजन, ऑक्सीजन, कार्बन डाईऑक्साइड आदि भारी गैसें हैं जबकि शेष गैसें हलकी गैसें हैं और वायुमंडल के ऊपरी भागों में स्थित हैंI
- कार्बन डाईऑक्साइड एवं ओजोन अस्थायी गैसे हैं जबकि नाइट्रोजन, ऑक्सीजन, हाइड्रोजन और नियोन स्थायी गैसें हैंI
जलवाष्प
- वायुमंडल में आयतानुसार 4% जलवाष्प की मात्र सदैव विद्दमान रहती हैI
- जलवाष्प की सर्वाधिक मात्र भूमध्य रेखा के आसपास और न्यूनतम मात्र ध्रुवों के आसपास होती हैI
- भूमि से 5 किमी. तक के ऊंचाई वाले वायुमंडल में समस्त जलवाष्प का 90% भाग होता हैI
- जलवाष्प सभी प्रकार के संघनन एवं वर्षण सम्बन्धी मौसमी घटनाओं के लिए जिम्मेदार होती हैI
धूल कण
- इसे एयरोसोल भी कहा जाता है. विभिन्न स्रोतों से वायुमंडल में जानेवाले धूलकण आर्द्रता ग्राही नाभिक का कार्य करते हैंI
- धूलकण सौर विकिरण के परावर्तन और प्रकीर्णन द्वारा ऊष्मा अवशोषित करते हैंI
- वर्णात्मक प्रकीर्णन के कारण आकाश का रंग नीला और सूर्योदय और सूर्यास्त के समय-समय दिखने वाला रंग धूलकणों की ही देन हैI
- ऊषाकाल एवं गोधूली की तीव्रता एवं उसकी अवधि के निर्धारण में धूलकणों की प्रमुख भूमिका होती हैI
- धूलकण एवं धुएँ के कण आद्रता ग्राही नाभिकों का भी कार्य करते हैंI
- धूलकणों का सर्वाधिक जमाव ऊपोष्ण व औद्योगिक क्षेत्रों में एवं न्यूनतम जमाव ध्रूवों के निकट पाया जाता हैI

